Anthrax गिल्टी रोग
छूआछूत व संक्रमण से पशुओं में फैलनेवाली एंथ्रेक्स बीमारी जानलेवा है। पशु रोग विशेषज्ञ बताते हैं कि यह एक एपीडेमिक बीमारी है जो एक बार जिस स्थान पर फैलता है वह उसी स्थान पर बार-बार फैला करता है। इसे गिल्टी रोग, जहरी बुखार या पिलबढ़वा रोग के नाम से भी पुकारा जाता है। यह रोग ज्यादातर गाय, भैंस, बकरी एवं घोड़े में होता है।यह सभी खेतिहर पशुओं को प्रभावित करती है मनुष्य में भी यह बीमारी होती है।
बीमारी का कारण व लक्षण :-
जीवाणु से दूषित चारा व दाना के खाने से यह रोग पनपता है , इस रोग के जीवाणु भूमि में 30 साल तक जीवित रह सकते है। एंथ्रेक्स बीमारी फैलने का कोई नियत समय या मौसम नहीं होता है। यह बीमारी साल के किसी भी महीने में फैल सकती है। यह बीमारी एक बैक्टीरिया से फैलती है। इससे पीड़ित पशु सुस्त हो जाता है और पागुर करना बंद कर देता है। बीमार पशु को तेज बुखार हो जाता है। प्लीहा काफी बढ़ जाता है। पेट काफी फूल जाता है। नाक, पेशाब के रास्ते और मल द्वार से खून बहने लगता है। कभी-कभी एकाएक बिना लक्षण दिखाए भी पशु की मौत हो जाती है।
ऐसे करें बचाव :-
पशु रोग विशेषज्ञ के मुताबिक इस रोग का इलाज करने से बचाव का इंतजाम करना बेहतर है। प्रारंभिक अवस्था में इलाज किया जाए तो प्रभावी होता है , अन्यथा पशु की मृत्यु हो सकती है। पशुपालक को पशुओं में रोग फैलने से पहले रोग निरोधक टीका अवश्य लगवा लेना चाहिए , पशुओं में नियमित वार्षिक टीकाकरण से इस बिमारी को रोका जा सकता है। टीका लगा देने पर पशु इस रोग से एक वर्ष तक सुरक्षित रहता है। अगर एंथ्रेक्स फैल जाए तो पशुपालक आसपास के गांव में पशुओं का आवागमन बंद कर दें। गांव में खाल की खरीद-बिक्री बंद करवा देना चाहिए। मृत पशु की खाल नहीं छुड़वाएं जिससे बीमारी और फैलती है। पशुओं को मृत्यु के बाद पांच-छह फुट गड्ढा कर चूना के साथ गाड़ देना चाहिए। गिलटी रोग से मरे हुवे पशु के शव को कभी भी खोलना या देखना नहीं चाइये । मनुष्यों में इसका संक्रमण बिना पके मांस के खाने से , संक्रमित पशु के संपर्क में आने या जीवाणुओं के श्वसन से होता है। विशेष क्षेत्र में रोग होने के कम से कम 1 माह पहले ही टीकाकरण करवा लेना चाइये ।
वर्जन
एंथ्रेक्स एक संक्रामक बीमारी है। इसका बैक्टेरिया 200 साल तक जीवित रहता है। अनुकूल माहौल मिलते ही यह हवा व पानी के माध्यम से फैलता है। इसलिए पशुपालकों को इससे सावधान रहने की जरूरत है। पशु के मृत होने पर बिना पोस्टमार्टम से इसे पांच-छह फीट गहराई में दफन कर देना चाहिए।