साइलेज एक प्रकार का हरा चारा है, जोकि पशुओं के लिए बहुत ही पौष्टिक और संतुलित चारा माना जाता है। इसके साथ ही यह हरे चारे का एक बेहतरीन विकल्प है, जो पोषक तत्वों से भरपूर होता है और इसे दुधारू पशुओं को खिलाने के लिए उपयोग किया जा सकता है। इसमें 85-90% हरे चारे के समान पोषक तत्व होते हैं, जो दूध उत्पादन को बढ़ाने में मदद करता है।
साइलेज बनाने के लिए मुख्य रूप से दाने वाली फसलों जैसे मक्का, ज्वार, जई और बाजरा का उपयोग किया जाता है। क्योंकि इन फसलों में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है। कार्बोहाइड्रेट की अधिकता से किण्वन प्रक्रिया तेज होती है, जो इसको को पोषक तत्वों से भरपूर बनाती है।
साइलेज बनाने के लिए फसल को जब दाने दूधिया अवस्था में हो, तब काटना चाहिए। इस समय चारे में 65-70% पानी रहता है, जो किण्वन प्रक्रिया के लिए उपयुक्त होता है। यदि पानी की मात्रा अधिक हो, तो चारे को थोड़ा सूखा लिया जाता है। इसको बनाने के लिए गड्ढे का चुनाव भी महत्वपूर्ण होता है। गड्ढे को हमेशा ऊंचे स्थान पर बनाना चाहिए ताकि बारिश का पानी अच्छे से बह सके और भूमि में पानी का स्तर भी कम हो। साथ ही, यह स्थान पशुशाला के नजदीक होना चाहिए, ताकि पशुओं को आसानी से साइलेज मिल सके।
साइलेज सभी प्रकार के पशुओं को दिया जा सकता है, लेकिन यह खासतौर पर दुधारू पशुओं के लिए बहुत लाभकारी होता है। क्योंकि यह उनके दूध उत्पादन को बढ़ाने में मदद करता है। एक सामान्य पशु को प्रतिदिन 20-25 किलोग्राम साइलेज दिया जा सकता है।
साइलेज को बनाने के 30-35 दिन बाद पशुओं को खिलाया जा सकता है, क्योंकि इस दौरान वह पूरी तरह से किण्वित हो चुका होता है और पोषक तत्वों से भरपूर होता है। पशुपालकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि साइलेज को हमेशा एक भाग सूखा चारा और एक भाग साइलेज मिलाकर दिया जाए। इससे पशुओं को संतुलित आहार मिलता है। यदि हरे चारे की कमी हो, तो साइलेज की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है, ताकि पशुओं की पोषण की आवश्यकता पूरी हो सके। पशुओं को साइलेज हर मौसम में दिया जा सकता है, खासकर तब जब हरे चारे की उपलब्धता कम हो। सही मात्रा में साइलेज देने से पशुओं का स्वास्थ्य भी बेहतर रहता है और उनकी उत्पादकता में सुधार होता है।